Dainik Bhaskar
दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर सड़क किनारे कुछ झुग्गियां नजर आती हैं। घुमंतू जनजाति के करीब दो दर्जन परिवार इन झुग्गियों में रहते हैं। महेंद्र और उनका परिवार भी इनमें से एक है। ये सभी लोग खिलौने बेचने का काम करते हैं। पास में ही बना एक ट्रैफिक सिग्नल इन लोगों की कर्मभूमि है।
सिग्नल पर लगी जो बत्ती लाल होते ही ट्रैफिक को रुकने का इशारा देती है, वही लाल बत्ती इन लोगों के लिए काम शुरू करने का इशारा होती है। रेड सिग्नल पर जितनी देर गाड़ियां रुकती हैं, उतना ही समय महेंद्र और उनके परिवार को मिलता है कि वे गाड़ी में बैठे लोगों को खिलौने खरीदने को मना सकें।
महेंद्र का छह साल का बेटा, जिसकी खुद की उम्र खिलौनों से खेलने की है, वह भी तपती धूप में नंगे पैर गाड़ियों के पीछे दौड़ता हुआ खिलौने बेचने में अपने पिता की मदद करता है। इन खिलौनों की बिक्री ही महेंद्र के परिवार को आजीविका देती है और आत्मनिर्भर बनाती है।
लेकिन, ये वो खिलौने नहीं हैं जिनसे देश को आत्मनिर्भर बनाने की बात हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में कही है। बल्कि ये चीन से आने वाले वे खिलौने हैं जिनका भारतीय बाजार में जबरदस्त दबदबा है।
महेंद्र नहीं जानते कि जो खिलौने वो बेचते हैं, उनका उत्पादन कहां होता है। उन्हें नहीं मालूम कि देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रधानमंत्री ने ‘मन की बात’ में क्या कहा है। वे ये भी नहीं जानते कि ‘मन की बात’ जैसा कोई रेडियो कार्यक्रम भी है या आत्मनिर्भर भारत जैसी कोई योजना भी। वे सिर्फ इतना जानते हैं कि ये खिलौने पुरानी दिल्ली के सदर बाजार में थोक के भाव मिलते हैं और इन्हें सड़क पर बेचने से उनके परिवार का पेट भर जाता है।
दिल्ली का सदर बाजार एशिया के सबसे बड़े थोक बाजारों में शामिल है। इसी बाजार का तेलीवाड़ा इलाका खिलौनों के थोक व्यापार के लिए मशहूर है। यहां सिर्फ खिलौनों के थोक विक्रेता ही नहीं बल्कि कई उत्पादक और इंपोर्टर भी हैं, जिनसे खिलौने खरीदने के लिए देश के कोने-कोने से व्यापारी यहां पहुंचते हैं।
इनमें बड़े दुकानदार भी होते हैं और महेंद्र जैसे छोटे-छोटे फेरी वाले भी। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के हालिया एपिसोड में भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की जो बात कही है, उसकी जानकारी महेंद्र जैसे लोगों को भले ही न हो लेकिन सदर बाजार के व्यापारियों के माथे पर इससे बल पड़ने लगे हैं।
वह इसलिए कि भारत में खिलौनों का जो बाजार है, उसमें करीब 80 प्रतिशत की हिस्सेदारी चीन से आयात होने वाले खिलौनों की ही है। बीते कई सालों से सदर बाजार में खिलौनों का थोक व्यापार करने वाले पुनीत सूरी कहते हैं, 'भारतीय खिलौनों का फ़िलहाल चीन के खिलौनों से कोई मुकाबला ही नहीं है। चीनी खिलौने क्वालिटी में हमारे खिलौनों से कहीं ज़्यादा बेहतर हैं और दाम में कहीं कम। वैसे खिलौने अगर भारत में बनने लगे तो हमें तो ख़ुशी ही होगी भारतीय माल बेचने में।'
टॉय एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अनुसार, भारत में हर साल चीन से करीब चार हजार करोड़ रु के खिलौने आयात किए जाते हैं। इन्हीं खिलौनों का बाजार मूल्य देखा जाए तो यह तीन गुना तक बढ़ जाता है लिहाजा चीन से आए खिलौनों का कुल व्यापार करीब 12 हजार करोड़ रु का हो जाता है।
जबकि भारतीय खिलौनों की बात करें तो उनका कुल व्यापार एक हजार करोड़ रु का भी नहीं है। खिलौनों के बाजार में चीन के इस दबदबे को कम करने के लिए मोदी सरकार ने बीते सालों में कुछ प्रयास किए हैं। लेकिन, ये सभी प्रयास विफल रहे और हर बार इनका नुकसान भारतीय व्यापारियों को ही उठाना पड़ा।
‘माइल स्टोन इपेक्स’ कंपनी के मालिक रमित सेठी बताते हैं, ‘2017 में ये सरकार सर्टिफिकेशन के नए नियम लेकर आई। इसके चलते हम जैसे व्यापारियों को लगभग हर उत्पाद पर एक लाख रुपए अतिरिक्त भार उठाना पड़ा। फिर सरकार ने चीन से आयात होने वाले खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी 20 फीसदी से बढ़ाकर सीधे 60 फीसदी कर दी।
तीन गुना बढ़ी इस इंपोर्ट ड्यूटी का भार भी हम जैसे इंपोर्टर पर ही पड़ा क्योंकि जो माल हम चीन से लेते हैं उनका भारत में कोई विकल्प ही नहीं है। खिलौने ही नहीं, इलेक्ट्रॉनिक में तो लगभग हर माल चीन से ही आ रहा है। जो नेता हवाई भाषण देते हुए चीन के बॉयकॉट की बात कहते हैं सबसे पहले उन्हें ही अपना माइक तोड़ देना चाहिए जिससे वो भाषण दे रहे होते हैं क्योंकि वो भी चीन का ही होता है।’
मौजूदा सरकार से यह नाराजगी रमित सेठी जैसे लगभग सभी खिलौना व्यापारियों की है। 1951 से खिलौनों का व्यापार कर रहे सिंधवानी ब्रदर्स के अजय कुमार कहते हैं, ‘खिलौनों का व्यापार सबसे पहले 90 के दशक में प्रभावित हुआ था, जब उदारवादी नीतियां अपनाई गई और विदेशी खिलौने भारतीय बाजारों में तेजी से आना शुरू हुए। उसके बाद इस व्यापार में सबसे ज़्यादा नुकसान इसी सरकार के दौरान हुआ है।’
अजय बताते हैं कि ‘पहले नोटबंदी ने खिलौनों के व्यापार को बड़ी चोट दी। नोटबंदी नवंबर में हुई थी जब सॉफ़्ट टॉय का सीजन शुरू होता है और वैलेंटाइन तक चलता है। उस साल पूरा सीजन मारा गया। फिर जीएसटी ने खिलौनों पर लगने वाले टैक्स को पांच फीसदी से बढ़ाकर 12 फीसदी और इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों में तो 18 फीसदी तक कर दिया। उसके बाद खिलौनों पर इंपोर्ट ड्यूटी दो सौ पर्सेंट बढ़ा दी गई और अब बीआईएस सर्टिफिकेशन खिलौना व्यापारियों की कमर तोड़ने जा रहा है।’ बीआईएस यानी ‘ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्ज़’।
यह एक सर्टिफिकेशन है, जो भारतीय खिलौना व्यापारियों के लिए नई मुसीबत साबित हो रहा है। मोदी सरकार ने देश में बिकने वाले सभी खिलौनों के लिए बीआईएस सर्टिफिकेशन अनिवार्य करने का फैसला लिया है। इस फैसले से सिर्फ़ वे व्यापारी ही परेशान नहीं हैं जो चीन से खिलौने आयात करते हैं बल्कि भारत में खिलौनों का उत्पादन करने वाले व्यापारी भी नाखुश हैं।
केके प्लास्टिक्स के मालिक कृष्ण कुमार पाहवा कहते हैं, ‘एक तरफ मोदी जी भारतीय खिलौनों और भारतीय व्यापारियों को बढ़ाने की बात करते हैं और दूसरी तरफ बीआईएस जैसी शर्तें लगाकर व्यापारियों की कमर तोड़ने का काम कर रहे हैं। भारत में खिलौने बनाने वाले अधिकतर छोटे-मोटे व्यापारी ही हैं। उनके लिए बीआईएस की शर्तें पूरी करना मुमकिन नहीं है, क्योंकि इसके लिए हर व्यापारी को एक अलग लैब बनवानी होगी।
भारतीय खिलौनों के कारखाने बहुत छोटी-छोटी जगहों पर चलते हैं, उनमें लैब की जगह कहां से निकलेगी और इसका खर्च भी छोटे व्यापारी नहीं उठा सकेंगे।’ केंद्र सरकार ने खिलौना व्यापारियों के लिए बीआईएस सर्टिफिकेशन इसी एक सितंबर से अनिवार्य कर दिया था। लेकिन, व्यापारियों के भारी विरोध के चलते फ़िलहाल इसे एक महीने के लिए टाल दिया गया है।
खिलौना व्यापारी इसका विरोध इसलिए भी कर रहे हैं क्योंकि इससे खिलौनों की लागत बहुत बढ़ जाएगी। साथ ही उनका ये भी सवाल है कि ये सर्टिफिकेशन सिर्फ खिलौनों के लिए ही क्यों लागू किया जा रहा है, अन्य उत्पादों के लिए क्यों नहीं?
भारतीय उत्पादकों की शिकायत है कि सरकार ने बीते सालों में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया जिससे भारतीय खिलौनों को बढ़ावा मिल सके। यदि ऐसा हुआ होता तो भारतीय बाजार पर चीन की पकड़ कमजोर की जा सकती थी। लेकिन, बिना अपनी पकड़ मज़बूत किए चीन से आयात को रोकने या मुश्किल करने का नुकसान भारतीय व्यापारियों को ही उठाना पड़ रहा है। बीआईएस को भी ऐसा ही कदम माना जा रहा है जो चीन को नुकसान करने की जगह भारतीय व्यापारियों को ही नुकसान कर रहा है।
1942 से भारत में खिलौनों का व्यापार करने वाली ‘मासूम प्लेमेट्स प्राइवेट लिमिटेड’ के मालिक कार्तिक जैन कहते हैं,‘बीआईएस के पीछे की मंशा अच्छी हो सकती है। खिलौने सुरक्षित हों ये कौन नहीं चाहेगा? लेकिन बीआईएस इस हड़बड़ी में लागू नहीं होना चाहिए जैसे इस सरकार के बाकी फैसले रहे हैं। नोटबंदी से लेकर जीएसटी तक, सबकी मंशा अच्छी ही थी लेकिन सबने नुकसान ही किया है। ऐसा ही बीआईएस के मामले में भी दिख रहा है। इस हड़बड़ी में लागू होने से कई छोटे व्यापारी ये धंधा छोड़ने को मजबूर हो जाएंगे।’
कार्तिक जैन बीआईएस के इस तरह लागू किए जाने को संदेह से देखते हुए कहते हैं, ‘ये भी कमाल का संयोग है कि पिछले ही साल मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस रीटेल ने खिलौनों के चर्चित ब्रांड हेमलेज को खरीदा और उसके बाद से ही ऐसी नीतियां बनने लगी कि खिलौनों के व्यापार में बाकियों के लिए बने रहना बेहद मुश्किल होने लगा। ऐसा ही संयोग टेलीकॉम में भी हुआ था। अंबानी जी आए तो एयरटेल, वोडाफोन किसी का भी टिकना मुश्किल हो गया।
हेमलेज ब्रिटेन की एक मल्टीनेशनल कंपनी है जिसे दुनिया की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी खिलौनों की कम्पनी भी माना जाता है। मई 2019 में मुकेश अंबानी की रिलायंस रीटेल ने इसे 620 करोड़ रुपए में खरीदा था। रमित सेठी कहते हैं, हेमलेज जो भी खिलौने बना रही हैं, वो सब चीन के माल से बन रहे हैं। अब हेमलेज को अंबानी जी ने खरीद लिया तो इससे चीन का माल स्वदेशी तो नहीं बन जाएगा।’
मुकेश अंबानी का खिलौनों के व्यापार में आना, खिलौनों पर बीआईएस की शर्तें लागू होना और प्रधानमंत्री का 'मन की बात' में खिलौनों के व्यापार का जिक्र करना, इनके एक साथ होने को संदेह से देखते हुए टॉय एसोसिएशन से जुड़े एक व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, ‘भारत में खिलौनों का बहुत बड़ा बाजार है और इसमें 80 प्रतिशत से ऊपर चीन का माल बिकता है। ऐसे बाजार में सरकार की मदद से अंबानी जैसे बड़े व्यापारियों के लिए तो एकाधिकार बना लेने की गुंजाइश मौजूद है।
सरकार के फैसलों से इशारा भी यही मिल रहा है कि खिलौनों के व्यापार का पूरा खेल एक आदमी के इशारों पर हो रहा है।’ प्रधानमंत्री मोदी ने 'मन की बात' में भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की जो बात कही, उससे भारतीय उत्पादक खुश क्यों नहीं हैं? इस सवाल के जवाब में बीते 25 सालों से भारतीय खिलौने बना रहे अनिल तनेजा कहते हैं, ‘मोदी जी की कथनी और करनी में बहुत अंतर है।
बात वो हमें बढ़ाने की कहते हैं लेकिन फैसले उनके सारे हमें गिराने वाले रहे हैं। आगे के लिए अभी ऐसी कोई योजना नहीं है जिससे भारतीय खिलौना उत्पादकों को कोई राहत या बढ़ावा मिलता दिख रहा हो। बाक़ी 'मन की बात' में कुछ भी बोलना अलग बात है। बोलते तो मोदी जी अच्छा-अच्छा ही हैं।’
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