Dainik Bhaskar
बदलाव की बात हो तो शुरुआत खुद से करनी चाहिए…यही सुनते रहे हैं हम सब। लेकिन, बिहार बदलने का विजन लेकर राजनीति में आईं पुष्पम प्रिया चौधरी के गांव में ऐसा नहीं दिखता। खुद को सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुकीं पुष्पम प्रिया के गांव के 100 से ज्यादा घर डूबे हैं। पानी सड़ गया है। धूप होती है तो सड़ांध से जीना मुहाल हो जाता है। पीसीसी सड़क कई जगह लंबाई में ही आधी धंसकर गायब है। सड़क किनारे नाला नहीं है, इसलिए कहीं कीचड़ है, तो कहीं पानी।
इन स्थितियों में कोई बीमार पड़े, छींक भी हो तो जाइए डीएमसीएच या फिर खुद बन जाइए डॉक्टर। पुष्पम राजनीति में तो आईं, लेकिन गांव में नहीं। यह गांव वाले बोल रहे, हम नहीं। गांव के लोग कहते हैं कि “इनका पूरा परिवार तो जदयू का है, नीतीश का है। नई पार्टी बनाई तो मीडिया वाले ही घूमते आए, तब पता चला। पार्टी बनाकर भी एक ही बार गांव आईं। राज्य में क्या कर रहीं, हमें तो तब पता चलता जब गांव में कुछ कर जातीं।”
गांव के लोग पुष्पम प्रिया से मिले तक नहीं
पुष्पम प्रिया को उनके गांव के लोग ही नहीं पहचानते हैं। उनसे मिले भी नहीं हैं। कहते हैं- “इ सब अप्पन हित देखे छै। 40 साल से इनकर परिवार दरभंगा में रैह रहल छै। परिवार के गांव से कहियो मतलबे नै रखला।” गांव के लोगों की शिकायत है कि उनके परिवार ने कभी गांव के विकास के लिए कुछ किया ही नहीं, जबकि बाबा उमाकांत चौधरी समता पार्टी के समय से नीतीश कुमार से जुड़े थे। पिता विनोद कुमार चौधरी जदयू के एमएलसी रहे हैं और चाचा विनय कुमार चौधरी बेनीपुर से जदयू के प्रत्याशी भी हैं।
विशनपुर गांव के मुखिया राजकुमार चौधरी कहते हैं- “गांव की बेटी है, बिहार में मिसाल बनना था तो शुरुआत गांव से करनी चाहिए थी। चुनाव भी अपने क्षेत्र हायाघाट से लड़ना चाहिए था।” लोग कैमरे के सामने बात करना नहीं चाहते, लेकिन सहज बातचीत हो तो खुलकर बोलते हैं- “झुट्ठो बदलाव-बदलाव करै छै। बाबा, बाबू, चचा त सरकार में रहिकर किछो नै क सकला।”
विशनपुर गांव में मुड़ते ही दिखती है परेशानी-बदहाली, गुस्से में लोग
दरभंगा जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर है विशनपुर गांव। बारिश हुए कई दिन बीत चुके थे, लेकिन सड़क पर पानी जमा था। घर तक में पानी दिखा। कई परिवार तो दूसरे के घरों में रहते मिले। लोगों ने दिखाना शुरू किया कि पूरा परिवार राजनीति से जुड़ा है, ताकतवर भी है, लेकिन कभी गांव में नाला बनवाने के लिए कुछ नहीं किया। नतीजा हर साल दिखता है, लेकिन भुगतने वालों के बारे में यह परिवार नहीं सोचता है। किसी ने नहीं सोचा और बेटी चली है बिहार बदलने।
गांव के ही श्यामा मंदिर के पास रामनरेश चौधरी नाम के एक बुजुर्ग मिले। लाठी के सहारे सड़क पर बह रहे गंदे पानी के बीच खुद को बचाकर निकलने की कोशिश कर रहे थे। बोले, “हम सब बहुत परेशान छि। हमरा गांव के हाल बड्ड खराब छै। एता से केकरो मतलब नै छै, आउर कउनो देखै आवे वला नै छै हो। गांव में रोड त छै पर, नाली कै कोनो व्यवस्था नै छै। एहन हाल छै जेना बहुत बारिश भेल हो। मुखिया और विधायक के भी हमरा सब से कोनो मतलब नै छै, नै कहियो देखेले आबै छै।”
बीमार पड़ला पर 15 किमी दूर जाए परै छै, मिट्टी से लगाव नै छै
पुष्पम प्रिया के गांव में आजतक एक हेल्थ सेंटर नहीं बना। किसान श्याम शंकर चौधरी कहते हैं, “विडंबना छै कि बीमार पड़ला पे अपन गांव के व्यक्ति-बच्चा के 15 किलोमीटर दूर डीएमसीएच (दरभंगा मेडिकल कॉलेज) ले जाए परै छै। 4 किलोमीटर दूरी पर बगल वला गांव में उप स्वास्थ्य केंद्र छै, लेकिन उतो कोनो इलाज करै के सुविधा नै छै हो।” वो ये भी कहते हैं कि जन्मभूमि से लगाव नहीं रखने वाले परिवार की बेटी पूरे बिहार से लगाव दिखा रही है तो सुनकर आश्चर्य ही होता है।
प्लूरल्स का नाम भी नहीं ले पाते हैं लोग
गांव में ही हमें किसान संतोष कुमार चौधरी मिले। पुष्पम को वो सही से जानते नहीं है। उन्हें देखा भी नहीं है। संतोष कहते हैं कि गांव की बेटी है। राजनीति में आना और पार्टी बनाना तो ठीक है, लेकिन पार्टी का नाम ऐसा है कि बोल नहीं पाते हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वो प्लूरल्स के कैंडिडेट को वोट करेंगे तो जवाब था, “इस बारे में बाद में सोचेंगे। सब कैंडिडेट पर डिपेंड करता है।”
गांव में कई ऐसे लोग मिले जो प्लूरल्स का नाम सही से बोल नहीं पा रहे थे। विधानसभा चुनाव की फर्स्ट टाइम वोटर स्वाति कुमारी कहती हैं, “पुष्पम प्रिया को अब तक सिर्फ फेसबुक-यूट्यूब पर ही देखा है। अभी तो बात ही पर सबकुछ है। जो स्टूडेंट्स के लिए बेहतर शिक्षा और रोजगार उपलब्ध कराने की बात करेगा, उसी को वोट देंगे।”
पुश्तैनी घर में मिले चाचा, कहा- रिश्ता देखकर वोट नहीं देता
पूरे गांव में घूमने और लोगों से मिलने के बाद भास्कर की टीम पुष्पम प्रिया चौधरी के पुश्तैनी घर पहुंची। वहां पर सरकारी टीचर सुमित कुमार चौधरी मिले। सुमित हैं तो पुष्पम के चचेरे चाचा, लेकिन अपनी भतीजी को लेकर भी साफ-साफ नहीं बोलते हैं। कहने लगे- “जो विकास की बात करेगा, वोट उसी को जाएगा। नाते-रिश्तेदार को देख कर वोट नहीं करेंगे।”
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