Dainik Bhaskar
आपने हॉलीवुड के फिल्मी कैरेक्टर सुपरमैन, आयरनमैन और स्पाइडरमैन के बारे में सुना ही होगा। लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं रियल लाइफ के इंडियन सुपरहीरो ‘हेलमेट मैन’ से। बिहार के कैमूर जिले के एक छोटे से गांव बगाढ़ी के रहने वाले राघवेंद्र कुमार देशभर में अब तक 48 हजार से ज्यादा हेलमेट फ्री में बांट चुके हैं।
2014 में हुए एक बाइक हादसे में उन्होंने अपने जिगरी दोस्त को खाे दिया था। इसके बाद ही उन्होंने फ्री में हेलमेट बांटना शुरू किया। उनका मकसद है कि उनके दोस्त की तरह किसी और की मौत हेलमेट न होने की वजह से ना हो।
गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले राघवेंद्र बताते हैं, 'मैं अपने 4 भाईयों में सबसे छोटा हूं। पिता खेती-किसानी करके घर चलाते थे, परिवार की माली हालत अच्छी नहीं थी। फिर भी मुझे स्कूल भेजा, लेकिन 12वीं के बाद मुश्किलें बढ़ गईं। परिवार के पास इतने पैसे नहीं थे कि आगे की पढ़ाई का खर्च उठा सकें। ऐसे में मैंने वाराणसी जाने का निर्णय लिया। यहां 5 सालों तक मैंने कई छोटे-मोटी नौकरियां की और पढ़ाई के लिए पैसा जुटाया।'
उन्होंने कहा, '2009 में जब मैं लॉ की पढ़ाई करने दिल्ली गया, तो वहां मेरे कुछ दोस्त बने। इनमें से एक था कृष्ण कुमार ठाकुर। कृष्ण इंजीनियरिंग कर रहा था। हम लोगों के डिपार्टमेंट अलग थे, लेकिन हॉस्टल में हम साथ रहते थे। 2014 में जब वह ग्रेटर नोएडा एक्सप्रेस-वे पर बिना हेलमेट के बाइक चला रहा था, तो एक एक्सीडेंट में सिर में चोट लगने से उसकी मौत हो गई। इस घटना ने मुझे अंदर तक झकझोर कर रख दिया।'
राघवेंद्र बताते हैं, 'अस्पताल में कृष्ण की मौत के बाद जब डॉक्टरों से मेरी बात हुई, तो उन्होंने कहा कि अगर तुम्हारे दोस्त ने हेलमेट पहना होता, तो शायद वह बच जाता। इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। इसके बाद मैंने तय किया कि अब अपने दोस्त की तरह किसी और को मरने नहीं देंगे। इसके बाद मैंने एक सड़क सुरक्षा अभियान की शुरुआत की, जिसके तहत मैं किसी भी चौराहे पर खड़े होकर दोपहिया वाहन चालकों को नि:शुल्क हेलमेट बांटता था।'
राघवेंद्र कहते हैं, 'जब मैं अपने दोस्त के माता-पिता से मिलने के लिए गया, तो उसकी कुछ किताबें अपने साथ ले आया था। वो किताबें मैंने एक जरूरतमंद बच्चे को दे दी। इसके बाद मैं हेलमेट बांटने के काम में लगा रहा। 2017 में मुझे एक कॉल आया, ये कॉल उस बच्चे की मां की थी, जिसे मैंने कृष्ण की किताबें दी थीं। उन्होंने बताया कि मेरी दी गई किताबों की मदद से उनका बेटा न सिर्फ ठीक से पढ़ सका, बल्कि उसने स्कूल में टॉप भी किया है। उस बच्चे की मां की बातें सुनकर मेरे दिल को बहुत सुकून मिला।'
इसके बाद राघवेंद्र ने सोचा कि अगर हर जरूरतमंद बच्चे को समय पर किताबें मिलती रहें, तो बेशक बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। फिर उन्होंने अपने इस विचार को एक बड़े अभियान का रूप दे दिया और संकल्प किया कि अब वो हेलमेट मुफ्त में नहीं, बल्कि किताबों के बदले देंगे। इस तरह साल 2017 में उन्होंने अपनी इस पहल को एक और नेक काम के साथ जोड़ लिया।
राघवेंद्र बताते हैं, 'जो भी मुझे पुरानी किताबें लाकर देता है, मैं उसे ही हेलमेट देता हूं। फिर इन किताबों को हम जरूरतमंद बच्चों में बांट देते हैं। सबसे अच्छी बात यह है कि अब मेरी इस मुहिम से स्कूल-कॉलेज के छात्र भी जुड़ने लगे हैं। इसके अलावा हमने करीब 40 से ज्यादा शहरों में ‘बुक डोनेशन बॉक्स’ भी लगाए हैं। जो कोई भी इन शहरों में उनकी मदद करना चाहता है, इन बॉक्स में किताबें डाल जाता है।'
आज उनके साथ अलग-अलग जगहों के 200 से भी ज्यादा लोग जुड़े हुए हैं और इस मुहिम में उनका साथ दे रहे हैं। इसके जरिए वो अब तक 6 लाख बच्चों तक नि:शुल्क किताबें पहुंचा चुके हैं।
राघवेंद्र बताते हैं, 'ये सफर इतना आसान नहीं था। अपने मिशन के लिए पहले उन्हें अपनी नौकरी छोड़नी पड़ी। कुछ समय बाद जब हेलमेट खरीदने के लिए ज्यादा पैसों की जरूरत पड़ी तो उन्होंने पहले अपनी वाइफ की ज्वैलरी और फिर अपना घर तक बेच दिया।'
राघवेंद्र कहते हैं, 'मेरी कोशिश है कि ऐसा कोई नियम बने, जिससे बिना हेलमेट पहने हुए कोई भी शख्स टोल प्लाजा पार ना कर पाए। यदि हम पूरे देश में ऐसा कर पाए, तो निश्चित तौर पर लोगों की मानसिकता में बदलाव आएगा। मेरा निवदेन है कि चाहे 50 मीटर जा रहे हों या 50 किलोमीटर, हेलमेट पहनकर ही बाइक चलाएं। एक्सीडेंट कभी किसी को बोलकर नहीं आता है। मेरी गाड़ी के पीछे भी संदेश लिखा है- यमराज ने भेजा है बचाने के लिए, ऊपर जगह नहीं है जाने के लिए।'
अब अपनी मुहिम को एक कदम आगे बढ़ाते हुए राघवेंद्र ने हेलमेट के साथ 5 लाख रुपए का फ्री दुर्घटना बीमा भी देना शुरू किया है। इसमें स्टार हेल्थ एंड एलाइड इंश्योरेंस कंपनी उनकी मदद कर रही हैं। राघवेंद्र के काम के लिए केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी भी उनकी तारीफ कर चुके हैं। वहीं राघवेंद्र के इस निस्वार्थ काम से प्रभावित होकर बिहार सरकार ने उन्हें सम्मानित किया है और ‘हेलमेट मैन’ का टाइटल दिया है।
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