Dainik Bhaskar
एड्स एक गंभीर और जानलेवा रोग है। एक समय ऐसा था कि लोग एड्स पीड़ितों से दूर भागते थे। कुछ ऐसा ही 1997 में दक्षा पटेल के साथ भी हुआ। शादी के बाद खुशी-खुशी गृहस्थी की शुरुआत की और 6 महीनों के बाद गर्भवती हुईं। लेकिन इसी दौरान उनकी मेडिकल रिपोर्ट ने उनके होश उड़ा दिए, क्योंकि रिपोर्ट से पता चला कि वे HIV पॉजिटिव हैं।
उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा और वे गर्भ धारण नहीं कर सकीं। लगातार मौत का इंतजार कर रही दक्षाबेन ने निराशा को दूर करने का फैसला किया और उन जैसे लोगों की मदद के बारे में सोचा। इसके लिए उन्होंने एक संगठन बनाया और आज का उनके द्वारा स्थापित संगठन गुजरात स्टेट नेटवर्क ऑफ पीपुल लिविंग विथ एचआईवी एड्स (GSNP+) 74 हजार लोगों को दवाओं से लेकर तमाम तरह की सहायता प्रदान कर रहा है।
दक्षाबेन पटेल बताती हैं, ‘मेरा परिवार गुजरात के सौराष्ट्र से सूरत शिफ्ट हो गया था। इस तरह मेरा बचपन और फिर पढ़ाई भी सूरत में ही हुई। शादी के बाद 1997 में मेरी रिपोर्ट पॉजिटिव आई। बीमारी की गंभीरता के बारे में सुनकर तो मेरे जीवन में अंधकार फैल गया था।
लेकिन मैंने अपने आपको ही नहीं, बल्कि मेरे जैसे लोगों को इस निराशा से निकालने का फैसला किया और HIV पॉजिटिव साथी मरीजों के साथ मिलकर 2003 में 'गुजरात स्टेट नेटवर्क ऑफ पीपुल लिविंग विद एचआईवी' की स्थापना की। आज हमारे संगठन का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया है।
संगठन के माध्यम से करीब 74 हजार पॉजिटिव लोगों को परिवार मिल गया है। हालांकि, मेरा यह संघर्ष आसान नहीं था। परिवार और खासतौर पर पति का मुझे बहुत सपोर्ट मिला और मैं आगे बढ़ती चली गई। आज मेरे जीवन का संघर्ष सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के लिए है।’
22 साल पहले डॉक्टर ने कहा था कि तुम पांच महीनों से ज्यादा जी नहीं पाओगी
दक्षाबेन कहती हैं ‘परिवार का सपोर्ट मिला तो मुझे ताकत और मेरे जीवन को दिशा भी मिली। उस समय सूरत में HIV पॉजिटिव के सिर्फ 35 केस ही थे। मैंने देखा कि इन लोगों के साथ लोग अछूतों जैसा व्यवहार करते थे और इनसे दूर रहा करते थे। मैं इनसे मिली और इसके बाद 6 साल तक इनके साथ रहकर शरीर को फिट रखने की हर तरह की कोशिश की। इसके बाद इन्हीं लोगों के साथ मिलकर 'गुजरात स्टेट नेटवर्क ऑफ पीपुल लिविंग विद एचआईवी' की स्थापना की।
मुझसे करीब 22 साल पहले डॉक्टर ने कहा था कि तुम पांच महीनों से ज्यादा जी नहीं पाओगी, लेकिन आज 22 साल बाद भी मैं सामान्य जीवन जी रही हूं। दरअसल, जब लोग HIV पॉजिटिव लोगों से दूर रहने की कोशिश करते हैं, तब खुद मरीज अपने आपको समाज से दूर रखने लग जाता है। लेकिन मैं दोनों की विचारधारा को बदलने में लगभग कामयाब रही।
आज HIV पॉजिटिव लोग भी सामान्य लोगों की तरह सोसायटी में रहते हैं और दूसरों की मदद करने के अपने ध्येय में जी-जान से लगे हुए हैं। यहां मैं भी पति के साथ पिछले 22 सालों से सामान्य जीवन जी रही हूं।’
वो कहती हैं कि 1997 में HIV मरीजों का इलाज करने में तो डॉक्टर्स तक हिचकते थे। उस समय मरीजों को अपनी एक महीने की दवा के लिए ही कम से 25 हजार रुपए खर्च करने पड़ते थे। यह खर्च सामान्य मरीजों के लिए तो मुमकिन ही नहीं।
मैंने सबसे पहले इसी बात पर ध्यान दिया और अपने संगठन के माध्यम से गांधीनगर में एक रैली भी निकाली थी। इसका सुखद परिणाम यह रहा कि अब राज्य सरकार एड्स के साथ टीबी और कैंसरग्रस्त मरीजों को भी मुफ्त इलाज दे रही है।
दक्षाबेन बताती हैं ‘हमारे संगठन द्वारा अब मैरिज ब्यूरो भी संचालित किया जा रहा है। इसके तहत HIV लोग अपने जीवन साथी को चुन सकते हैं। अभी तक हम ऐसे 12 लोगों की शादी भी करवा चुके हैं और ये कपल आज सुखी जीवन जी रहे हैं। उन्हें नियमित रूप से हमारे संगठन द्वारा दवाइयां पहुंचाई जाती हैं। आज हमारा संगठन गुजरात के 25 जिलों में कार्यरत है।
इसके अलावा संगठन का काम एड्स से बचाव करवाना भी है, जिसके तहत हम अन्य बहनों को जागरूक करते हैं कि वे इस बीमारी की चपेट में आने से कैसे बच सकती हैं। दक्षाबेन का संगठन 2 वर्ष से लेकर 65 साल तक के मरीजों को निःशुल्क दवाएं दे रहा है। वहीं, दूर-दराज इलाकों से आने वाले मरीजों को मुफ्त दवाइयों के साथ यात्रा खर्च भी दिया जाता है।
एड्स जैसी घातक बीमारी के बारे में दक्षाबेन बताती हैं कि इस बीमारी से डरने की जरूरत नहीं। पहले इसे लेकर इतनी भ्रांतियां फैला दी गई थीं कि मरीज मानसिक रूप से ही टूट जाता था। जबकि इस बीमारी से लंबे समय तक लड़ा जा सकता है।
आज लगभग प्रत्येक जिले में मरीजों के लिए शासकीय सेंटर हैं, जहां से मुफ्त में दवाएं और स्टाफ से मार्गदर्शन भी लिया जा सकता है। पॉजिटिव रहते हुए आप बिल्कुल सामान्य इंसानों की तरह अपना जीवन जी सकते हैं। हां, इसकी दवाएं नियमित रूप से लेना बहुत जरूरी है।
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