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Dainik Bhaskar

मेरी दो आंखें थीं, एक चली गई अब बस एक ही रह गई है, ये कहते-कहते हरचरण सिंह की आंखों में ठहरे आंसू उनके गालों तक चले आए। दिसंबर की सर्द रात में उनका चेहरा भीग गया। पंजाब के संगरूर के रहने वाले हरचरण सिंह टिकरी बॉर्डर पर किसानों के धरने में शामिल हैं। पांच साल पहले उनके तीस साल के बेटे ने सल्फास खाकर खुदकुशी कर ली थी।

हरचरण सिंह को वो मंजर आज भी याद है जब उनके बेटे ने सल्फास की डेढ़ गोली घोलकर पी ली थी। उनका जवान बेटा घर के आंगन में बेसुध पड़ा था। पड़ोसियों की भीड़ इकट्ठा थी। वो खबर सुनकर दौड़कर घर पहुंचे थे, लेकिन बहुत कोशिश के बाद भी अपने बेटे को बचा नहीं पाए थे।

चार किल्ले जमीन के मालिक हरचरण सिंह ने खेती करने के लिए कर्ज लिया जो ब्याज के साथ बढ़ता ही चला गया। वो याद करते हैं, 'आढ़तियों के 3 लाख रुपए देने थे। 1.60 लाख का लोन था, एक लाख रुपए किसान क्रेडिट कार्ड के थे, 90 हजार रुपए और थे। कुल मिलाकर 7 लाख रुपए के करीब कर्ज था।'

हरचरण सिंह का समाजसेवी बेटा कर्ज उतारने के लिए जो काम मिल रहा था, वह कर रहा था। लेकिन कर्ज था कि बढ़ता ही जा रहा था। एक दिन जब परिवार सुबह चाय पी रहा था तो उनके बेटे ने पूछा कितना कर्ज बाकी रह गया है। हरचरण बोले, 'सात लाख'। ये सुनते ही सकते में आए बेटे ने कहा, 'बापू तू तो कह रहा था कि लोन खत्म हो जाएगा, ये तो बढ़े ही जा रहा है।' उस दिन के बाद से हरचरण सिंह ने कभी अपने बेटे को खुश नहीं देखा और आखिरकार एक दिन उसने खुदकुशी कर ली। हरचरण सिंह का बड़ा बेटा चला गया है, लेकिन कर्ज अभी बाकी है।

पंजाब के संगरूर के रहने वाले हरचरण सिंह के बेटे ने कर्ज के चलते जहर खाकर अपनी जान दे दी थी।

वो कहते हैं, 'बड़ा परिवार है। घर में शादी हुई तो कर्ज ले ले लिया, कोई बीमार पड़ गया तो कर्ज लिया, खेतों में पैसा लगा, मशीनरी में लगा। कर्ज बढ़ता ही गया।' वो ज्यादातर गेहूं की खेती करते हैं। कहते हैं, 'खाने के लिए भी गेहूं रोकना पड़ता है। सारा बेच नहीं पाते। जो गेहूं बेचते थे उससे खर्च पूरा नहीं हो पाता था।' हरचरण सिंह अपनी झुकी कमर लिए लंगड़ाते हुए भारी कदमों से ट्रॉलियों की भीड़ की तरफ मुड़े और दिसंबर की सर्द रात के धुंधलके में खो गए।

पंजाब सरकार के मुताबिक 2000 से अक्टूबर 2019 तक 3300 से ज्यादा किसानों ने कर्ज की वजह से आत्महत्या की है। इनमें से 97 फीसदी किसान मालवा इलाके के ही हैं। सतलुज के दक्षिण में बसे मालवा में पंजाब के 22 में से 14 जिले आते हैं। यहां ज्यादातर किसानों के पास एक से पांच एकड़ तक जमीन है। संगरुर जिले में सबसे ज्यादा किसानों ने आत्महत्या की है।

संगरुर से ही आई गुरमील कौर महिलाओं के एक समूह के साथ बैठी हैं। ये सब सुनाम तहसील के जखेपल हम्बलवास गांव की रहने वाली हैं। ये गांव किसानों की आत्महत्या के लिए बदनाम है। गुरमील कौर के पति ने 6 लाख रुपए के कर्ज के चलते 2007 में खुदकुशी कर ली थी। तब उनका बेटा सिर्फ पांच साल का था। गुरमील के पास दो किल्ले जमीन हैं जो उन्होंने बंटाई पर दे रखी है। वो बताती हैं, 'हर वक्त कर्ज उतारने की टेंशन लगी रहती थी। आखिरकार पति ने पेस्टीसाइड पीकर जान दे दी।'

संगरुर से आई गुरमील कौर के पति ने छह लाख रुपए के कर्ज के चलते साल 2007 में खुदकुशी कर ली थी।

केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ 25 दिनों से जारी प्रदर्शन में शामिल गुरमील कौर कहती हैं कि उनके पति ने तो आत्महत्या कर ली, वो नहीं चाहती कि उनके बेटे के सामने भी ऐसे ही मुश्किल हालात हों और इसलिए ही वो किसान आंदोलन में शामिल होने आई हैं। पति की आत्महत्या के बाद किसी ने उनकी कोई मदद नहीं की। वो कहती हैं, 'मैंने बहुत ही मुश्किल हालात में अपने बेटे को पाला है। अब सरकार ऐसे कानून बना रही है जो किसानों के लिए और मुश्किलें पैदा करेंगे।'

हरमिंदर कौर के पति ने खेत में ही फांसी लगा ली थी। उनके दो बच्चे हैं जिनमें से एक अपाहिज है। हरमिंदर कौर कहती हैं, 'पति ने तो दस साल पहले जान दे दी, लेकिन कर्ज अभी भी चल रहा है। खेती करने के लिए कर्ज लिया था। कर्ज कम नहीं हुआ बढ़ता ही गया। वो टेंशन में रहने लगे थे, टेंशन की दवा भी ली लेकिन, कुछ अच्छा नहीं हुआ। फिर एक दिन वो खेत पर गए और वहीं लटक गए।'

हरमिंदर कौर अब किसानों के धरने में शामिल हैं। वो कहती हैं, 'दस साल से हम नरक में रह रहे हैं, लेकिन कोई हमारी सुध लेने नहीं आया, कर्ज का एक पैसा भी माफ नहीं हुआ।' बलजीत कौर के पति गुरचरण सिंह ने भी पांच लाख रुपए के कर्ज की वजह से खेत में ही जहर पीकर जान दे दी थी। बलजीत कौर 26 नवंबर से ही किसानों के धरने में शामिल हैं। वो कहती हैं, 'हमारे आदमियों ने खुदकुशी कर ली। दिन रात टेंशन में नींद नहीं आती। अब हम यहां अपने बच्चों के लिए बैठे हैं। कम से कम बच्चों का तो जीवन बचा रहे।'

हरमिंदर कौर के पति ने खेत में ही फांसी लगा ली थी।

वो कहती हैं, 'हमने कभी सोचा नहीं था कि ऐसे सड़कों पर चूल्हे लगाने पड़ेंगे। हम यहां इतनी ठंड में सड़क पर सो रहे हैं। हम दुखियारी औरतें हैं, उन्हें हमारा दर्द भी नहीं दिख रहा। प्रधानमंत्री ने कहा था कि हमारी आमदनी दोगुनी करेंगे। लेकिन कोरोना की आड़ लेकर ये काले कानून पास कर दिए। हमने प्रधानमंत्री को वोट दिया था, कुर्सी पर बिठाया था। हमें पता नहीं था कि हमारे वोट लेकर अडानी-अंबानी के लिए काम करेगा। अडानी-अंबानी का हमें ना नाम पता है ना शक्ल, हम बस प्रधानमंत्री को जानते हैं।'

जखेपल गांव से ही आए हरनेक सिंह अपना दर्द सुनाना चाहते हैं। एक एकड़ जमीन के मालिक उनके भाई ने इसी साल अप्रैल में आत्महत्या कर ली थी। उस पर छह लाख का कर्ज था। हरनेक सिंह कहते हैं, 'कर्ज में दबे भाई ने फंदा लगाकर जान दे दी। उसने कर्ज उतारने की बहुत कोशिश की लेकिन, उतार नहीं पाया। अब पीछे दो बेटे रह गए हैं, बस उनका कुछ हो जाए।' हरनेक सिंह इस उम्मीद में आंदोलन में शामिल होने आए हैं कि कोई उनका दर्द सुनेगा और उनके भतीजों के लिए कुछ करेगा। भाई को याद करते-करते उनकी आंखों में आंसू आ जाते हैं।

जखेपल के जत्थे में शामिल लोगों के मुताबिक उनके गांव में बीते दस सालों में कर्ज में दबे डेढ़ सौ से ज्यादा किसानों ने खुदकुशी की है। इनके परिवारों को नए कृषि कानूनों से कोई उम्मीद नहीं है। अपनी दर्दनाक कहानियां सुनाते-सुनाते इनके दिल अब ठंडे हो गए हैं और शायद इनसे ज्यादा दिल उनके ठंडे हैं जो इनके गम की तरफ देखना भी नहीं चाहते। बलजीत कहती हैं, 'हमने अपने पति खोए हैं लेकिन अपने बेटों को नहीं खोने देंगे। जब तक ये कानून वापस नहीं होते, यहीं दिल्ली की सड़कों पर सोएंगे।'



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कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन में उन किसानों के परिवार भी शामिल हैं, जिनके अपनों ने कर्ज के चलते आत्महत्या कर ली थी।


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