Dainik Bhaskar
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुरुवार को संसद की नई इमारत का शिलान्यास करेंगे। ये इमारत 2022 तक बनकर तैयार होने की उम्मीद है। बीते शनिवार को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला ने बताया कि इस इमारत के बनने में करीब 971 करोड़ रुपए खर्च होंगे। इस इमारत का निर्माण शुरू होने से पहले ही इसके साथ विवाद भी जुड़ गए हैं। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है।
सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस पूरे प्रोजेक्ट के अप्रूवल के तरीके पर नाराजगी भी जताई। कोर्ट ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत कोई कंस्ट्रक्शन, तोड़फोड़ या पेड़ काटने का काम तब तक नहीं होना चाहिए, जब तक कि पेंडिंग अर्जियों पर आखिरी फैसला न सुना दिया जाए। हालांकि, सरकार की तरफ से कंस्ट्रक्शन या तोड़फोड़ नहीं करने का भरोसा दिए जाने के बाद कोर्ट ने भूमि पूजन की इजाजत दे दी।
संसद की नई बिल्डिंग कब से बनेगी और कैसी होगी? इस बिल्डिंग को कौन बनाएगा? पुराने संसद भवन का क्या होगा? इस नई बिल्डिंग की जरूरत क्या है? नए निर्माण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में क्या चल रहा है? जो लोग इस निर्माण का विरोध कर रहे हैं उनका क्या तर्क है? आइये जानते हैं...
संसद की नई बिल्डिंग कहां बनेगी?
- पार्लियामेंट हाउस स्टेट के प्लॉट नंबर 118 पर बनने वाली इस नई इमारत का पूरा प्रोजेक्ट 64,500 स्क्वायर मीटर में फैला होगा। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला के मुताबिक, ये इमारत भूकंप रोधी होगी।
- इसे बनाने में 2000 लोग सीधे तौर पर शामिल होंगे। इसके अलावा 9,000 लोग परोक्ष रूप से इसमें शामिल होंगे। लोकसभा अध्यक्ष ने 5 नवंबर को कहा था कि नई संसद 2022 के बजट सत्र के पहले बन जाएगी।
नई बिल्डिंग में क्या-क्या होगा?
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नए भवन में लोकसभा सांसदों के लिए लगभग 888 और राज्यसभा सांसदों के लिए 326 से ज्यादा सीटें होंगी। संसद के संयुक्त सत्र में लोकसभा चेंबर में 1,224 सदस्य एक साथ बैठ सकेंगे। इसमें फर्क सिर्फ इतना होगा कि जिन सीटों पर दो सांसद बैठेंगे, उनमें संयुक्त सत्र के दौरान तीन सांसदों के बैठने का प्रावधान होगा।
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नए सदन में दो-दो सांसदों के लिए एक सीट होगी, जिसकी लंबाई 120 सेंटीमीटर होगी। यानी एक सांसद को 60 सेमी की जगह मिलेगी।
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देश की विविधता दर्शाने के लिए संसद भवन की एक भी खिड़की किसी दूसरी खिड़की से मेल खाने वाली नहीं होगी। हर खिड़की अलग आकार और अंदाज की होगी।
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तिकोने आकार में बनी बिल्डिंग की ऊंचाई पुरानी इमारत जितनी ही होगी। इसमें सांसदों के लिए लाउंज, महिलाओं के लिए लाउंज, लाइब्रेरी, डाइनिंग एरिया जैसे कई कम्पार्टमेंट होंगे।
इस बिल्डिंग को कौन बनाएगा?
इस बिल्डिंग को बनाने का जिम्मा टाटा प्रोजेक्ट को मिला है। सितंबर में उसने L&T और CPWD से कम बोली लगाकर प्रोजेक्ट बनाने की बोली जीती थी। इसे सेंट्रल विस्टा री-डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तहत बनाया जाएगा। इसका डिजाइन HCP डिजाइन प्लानिंग एंड मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड ने तैयार किया है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट है क्या?
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नई दिल्ली में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक के बीच का तीन किमी लंबे एरिया को सेंट्रल विस्टा कहते हैं। सितंबर 2019 में केंद्र सरकार ने इसके री-डेवलपमेंट की योजना बनाई। इस इलाके में नए संसद भवन समेत 10 नई इमारतें बनाने की योजना है। राष्ट्रपति भवन और मौजूदा संसद भवन पहले की ही तरह रहेगा। इसी री-डेवलपमेंट के मास्टर प्लान को ही सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट कहते हैं।
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राष्ट्रपति भवन, संसद, नॉर्थ ब्लॉक, साउथ ब्लॉक, उपराष्ट्रपति का घर, नेशनल म्यूजियम, नेशनल आर्काइव्ज, इंदिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स (IGNCA), उद्योग भवन, बीकानेर हाउस, हैदराबाद हाउस, निर्माण भवन और जवाहर भवन सेंट्रल विस्टा का ही हिस्सा हैं।
इसकी जरूरत क्यों पड़ी?
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दरअसल, 2026 में लोकसभा सीटों का नए सिरे से परिसीमन का काम शेड्यूल्ड है। इसके बाद सदन में सांसदों की संख्या बढ़ सकती है। इस बात को ध्यान में रखकर नई बिल्डिंग को बनाया जा रहा है। अभी लोकसभा में 543 सदस्य और राज्यसभा की 245 सदस्य हैं।
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1951 में जब पहली बार चुनाव हुए थे, तब देश की आबादी 36 करोड़ और 489 लोकसभा सीटें थीं। एक सांसद औसतन 7 लाख आबादी को रिप्रजेंट करता था। आज देश की आबादी 138 करोड़ से ज्यादा है। एक सांसद औसतन 25 लाख लोगों को रिप्रजेंट करता है।
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संविधान के आर्टिकल-81 में हर जनगणना के बाद सीटों का परिसीमन मौजूदा आबादी के हिसाब के करने का भी प्रावधान था। लेकिन, 1971 के बाद से ये नहीं हुई है।
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आर्टिकल-81 के मुताबिक देश में 550 से ज्यादा लोकसभा सीटें नहीं हो सकती हैं। इनमें 530 राज्यों में जबकि 20 केंद्र शासित प्रदेशों में होंगी। फिलहाल देश में 543 लोकसभा सीटें हैं। इनमें 530 राज्यों में और 13 केंद्र शासित प्रदेशों में हैं। लेकिन, देश के आबादी को देखते हुए इसमें भी बदलाव की बात चल रही है।
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मार्च 2020 में सरकार ने संसद को बताया कि पुरानी बिल्डिंग ओवर यूटिलाइज्ड हो चुकी है और खराब हो रही है। इसके साथ ही लोकसभा सीटों के नए सिरे से परिसीमन के बाद जो सीटें बढ़ेंगी, उनके सांसदों के बैठने के लिए पुरानी बिल्डिंग में पर्याप्त जगह नहीं है। वैसे भी 2021 में इस बिल्डिंग को बने हुए 100 साल पूरे होने वाले हैं।
अभी जो संसद भवन है उसका क्या होगा?
- संसद की मौजूदा इमारत को पुरातत्व धरोहर में बदला जाएगा। इसका इस्तेमाल संसदीय कार्यक्रमों में भी किया जाएगा।
- 1921 में इसे एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर ने बनाया था। उस समय ये इमारत छह साल में बनकर तैयार हुई थी। इसे बनाने में 83 लाख रुपए लगे थे।
इस प्रोजेक्ट का विरोध क्यों हो रहा है?
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इस प्रोजेक्ट का विरोध करने वालों का कहना है कि अथॉरिटीज की तरफ से नियमों की अनदेखी करके प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है। इसमें जमीन के इस्तेमाल में बदलाव को मंजूरी भी शामिल है। इन लोगों का कहना है कि इस पूरे निर्माण के दौरान कम से कम एक हजार पेड़ काटे जाएंगे। इसके कारण पहले से ही प्रदूषण से जूझ रही दिल्ली में हालात और खराब हो जाएंगे।
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प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले पर्यावरणविद तो यहां तक कहते हैं कि प्रोजेक्ट की मंजूरी से पहले इसका पर्यावरण ऑडिट तक नहीं कराया गया। वहीं जो इतिहासकार इसका विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि प्रोजेक्ट का कोई ऐतिहासिक या हेरिटेज ऑडिट भी नहीं हुआ है। इसे बनाने के लिए नेशनल म्यूजियम जैसी ग्रेड-1 हेरिटेज साइट में भी तोड़फोड़ होगी। यहां तक कि कंसल्टेंट चुनने में भी भेदभाव किया गया।
नई संसद के निर्माण पर सुप्रीम कोर्ट का क्या रुख है?
- इस प्रोजेक्ट के खिलाफ कम से कम सात याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। इन याचिकाओं पर कोर्ट सुनवाई कर रहा है। सोमवार को भी इन्हीं याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने प्रोजेक्ट के मंजूरी के तरीकों पर नाराजगी जताई थी।
- इस दौरान कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा था कि ‘आप शिलान्यास कर सकते हैं, आप कागजी करवाई कर सकते हैं लेकिन निर्माण, तोड़फोड़ या पेड़ काटना नहीं होगा।'
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