Dainik Bhaskar
सितंबर में सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों को आदेश दिए थे कि वे सेक्स वर्कर्स को सूखा राशन दें। महाराष्ट्र में सरकार इन्हें न सिर्फ राशन दे रही है बल्कि अब इन्हें 5 हजार रुपए महीने की आर्थिक मदद भी देने जा रही है। यह मदद 3 महीने (अक्टूबर से दिसंबर) के लिए दी जाएगी। राज्य में सेक्स वर्कर्स की पहचान की जा रही है। ऐसे में हमने मध्यप्रदेश के सूखा गांव (यहां पीढ़ियों से महिलाएं सेक्स वर्क में हैं), दिल्ली और मुंबई से सेक्स वर्कर्स के हालात जानने की कोशिश की।
मप्र के सूखा गांव से अक्षय बाजपेयी/ विकास वर्मा की रिपोर्ट...
सूखा गांव मप्र के रायसेन जिले में है। यहां पीढ़ियों से देह व्यापार होता आ रहा है। गांव में 100-150 घर हैं। आबादी हजार से भी कम है। यहां पुरुष छोटे-मोटे स्तर पर किसानी करते हैं। जब हम गांव में पहुंचे, तो गाड़ी देखते ही दलाल हमारे पास आ गए। सड़क पर जो मर्द घूम रहे थे, वो नशे में थे।
इन्हीं में से एक शख्स से हमने पूछा कि यहां सेक्स वर्कर्स कहां रहती हैं, हमें उनसे बात करनी है। वह हमें एक घर में ले गया। जहां चार-पांच बुजुर्ग महिलाएं बैठी थीं। ये सभी सेक्स वर्कर्स थीं, लेकिन बुजुर्ग होने के चलते अब इन्होंने यह काम बंद कर दिया था।
इन्हीं में से एक रेखा बाई से हमने पूछा कि आप इस गांव में कब से हैं? तो वे बोलीं, 'मैं तो पैदा ही यहीं हुई। बड़ी हुई, तो सेक्स वर्कर बन गई। 20 साल तक यह काम किया। इसी से गुजर-बसर चल जाता था। अब मेहनत मजदूरी करते हैं, उससे थोड़ा बहुत पैसा आ जाता है।' लॉकडाउन में आजीविका पर बोलीं, 'भाई का खेत है। उसी ने थोड़ी मदद कर दी थी। सरकार से तो कोई मदद नहीं मिली।'
अब तक जाति प्रमाण पत्र तक नहीं बने
रेखा के नजदीक ही अनीता बाई बैठीं थीं। 65 साल की अनीता का अभी तक जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पाया। मूल निवासी भी उनके पास नहीं है। उनके चार बच्चे हैं, उनके पास भी जाति प्रमाण पत्र नहीं है। हमने पूछा कि जाति प्रमाण पत्र क्यों नहीं बन पाया? इस पर बोलीं, 'वो कहते हैं बाप का नाम दो। अब बाप कहां से लाएं। हम तो सेक्स वर्कर थे। अब बच्चों के पिता का नाम कहां से लाएं।' गांव में अनीता जैसी बहुत सारी सेक्स वर्कर्स हैं, जिनका जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पा रहा है।
इस गांव में सभी बेड़िया जनजाति के लोग रहते हैं। इनके समाज में ही इनकी शादी होती है। शादी के बाद महिलाएं यह काम छोड़ देती हैं और फिर उनके कागज भी बन जाते हैं। जिनकी शादी नहीं होती, वो सेक्स वर्कर ही रह जाती हैं और फिर इनके कागज अटक जाते हैं। हालांकि वोटर आईडी, आधार कार्ड और बैंक अकाउंट में इनमें से अधिकतर के पास है।
अब कोई मदद के लिए नहीं आता
बुजुर्ग महिलाओं से बात करने के बाद हम उन लड़कियों के पास पहुंचे, जो अभी यह काम कर रहीं हैं। एक घर के सामने हमें 20-22 साल की लड़कियां बैठी दिखीं। हमने उनसे बात करनी चाही, तो उनमें से एक ने कहा कि, पहले आपका आईडी कार्ड दिखाइए।
कार्ड दिखाने पर उसने कहा कि क्या जानना चाहते हो? हमारी जिंदगी में तो मुसीबत ही मुसीबत है। उसने बताया, 'दो-तीन लाख रुपए थे। खेती के लिए जमीन, बीज लिए थे। मुनाफा हुआ नहीं, तो कर्ज बढ़ता गया। लॉकडाउन में एक बार कुछ लोगों के अकाउंट में पांच सौ रुपए आए थे। एक-दो बार किसी-किसी ने थोड़ा बहुत राशन भी बांटा। इसके लिए कोई मदद नहीं मिली।'
दिल्ली के जीबी रोड से रिपोर्ट...
दिल्ली का जीबी रोड रेड लाइट एरिया है। ये अजमेरी गेट से लाहौरी गेट के बीच का हिस्सा है। 40 से 71 नंबर की कोठियां सेक्स वर्कर्स की हैं। लॉकडाउन के पहले यहां तीन से चार हजार वेश्याएं थी, जो अब हजार रह गईं हैं। काम बंद होने के चलते कोई अपने गांव चली गई, तो कोई किसी दोस्त के साथ है। जो कहीं नहीं जा सकती थीं, वो यहीं हैं। लॉकडाउन में सामाजिक संस्थाएं इन्हें राशन बांट रही थीं। कुछ ने हैंड सैनिटाइजर और मास्क भी बांटे।
20 साल से यहां रह रहीं रेश्मा ने बताया कि लॉकडाउन के शुरूआती तीन महीनों में तो काम पूरी तरह से चौपट हो गया था। बाद में थोड़े बहुत ग्राहक आना शुरू हुए, लेकिन इससे सबको काम नहीं मिलता।' आपको सरकार से क्या मदद मिली?
ये पूछने पर बोलीं, 'सरकार ने तो अभी तक कोई मदद नहीं की, लेकिन सामाजिक संस्थाएं जरूर आ रही हैं, वो हमें राशन दे रही हैं। ठंड में कुछ लोगों ने कंबल भी दिए हैं, लेकिन सिर्फ राशन मिलने से क्या होता है। हमारे बच्चे हैं, जो दूर गांव में रहते हैं, उन्हें पढ़ाई-लिखाई के लिए पैसे भेजना पड़ते हैं, जो अब हमारे पास हैं नहीं।'
कोरोनाकाल में बिगड़े हालात
पिछले 50 सालों से सेक्स वर्कर्स के अधिकारों के लिए लड़ रहे भारतीय पतिता उद्धार सभा के अध्यक्ष खैरातीलाल भोला कहते हैं कि वेश्याओं की जितनी बुरी हालत कोरोना काल में हुई है, इतनी बुरी पहले कभी नहीं हुई।
वे कहते हैं कि हमने जब सर्वे करवाया, तब पता चला कि देशभर में 1100 रेड लाइट एरिया हैं। करीब 28 लाख सेक्स वर्कर हैं और इनके 54 लाख बच्चे हैं, जो इनसे दूर रहते हैं। कुछ पढ़ते हैं। कुछ मजदूरी करते हैं। सरकार इनके लिए कुछ नहीं करती।
नेशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स की नेशनल कॉर्डिनेटर अयीशा राय खुद भी सेक्स वर्कर हैं। उनके मुताबिक, लॉकडाउन के बाद से सेक्स वर्कर्स को क्लाइंट नहीं मिल रहे। कई ने कर्जा ले लिया। कुछ ने सोना रखकर कर्ज लिया है। जिसका मोटा ब्याज इन्हें चुकाना पड़ रहा है। अब सरकार मदद नहीं करेगी, तो इनके मरने की नौबत आ जाएगी।
मुंबई के कमाठीपुरा से मनीषा भल्ला की रिपोर्ट...
मुंबई का कमाठीपुरा देश के बड़े रेड लाइट एरिया में से एक है। कोरोना ने यहां की करीब 3500 सेक्स वर्कर्स को सड़क पर ला दिया है। लॉकडाउन में तो सरकारी अस्पतालों से इन्हें दवाइयां भी नहीं मिल पा रहीं थीं।
यहां रहने वाली सेक्स वर्कर मीना कहती हैं, 'मैं आपको क्या बताऊं, लॉकडाउन में तो कमाठीपुरा की सभी गलियां सील कर दी गईं थी। पुलिस का सख्त पहरा था। पुलिस न तो यहां के मर्दों को बाहर घूमने देती थी, न ही हमें घर से बाहर निकलने देती थी। अब तो हालात सामान्य हो रहे हैं, फिर भी कोई ग्राहक नहीं आ रहे।'
यहां की कई सेक्स वर्कर गंभीर बीमारियों से जूझ रही हैं। सेक्स वर्कर सुमन को अस्थमा की बीमारी है। पहले वह पास के सायन अस्पताल से फ्री में दवा लेकर आती थी, लेकिन लॉकडाउन के बाद से अभी तक दवाइयां बमुश्किल जुटा पा रही हैं।
5% सेक्स वर्कर HIV पॉजिटिव
यहां रहने वाली 5% सेक्स वर्कर HIV पॉजिटिव हैं। अब वह न तो अपने घर वापस जा सकती हैं, न कहीं और दूसरा काम ढूंढ सकती हैं। जब तक वह कमाती थीं, तो परिवार वाले उनसे पैसे ले लेते थे, लेकिन अब जब काम बंद हो गया, तो परिवार ने रिश्ता खत्म कर लिया। सेक्स वर्कर रेखा कहती हैं कि अभी इक्का दुक्का ग्राहक ही आ रहे हैं। एक दिन में 100-200 रुपए की कमाई हो रही है। पहले न तो पैसे की कमी थी, न ग्राहक की।
इलाके में सेक्स वर्कर के बीच काम करने वाली साईं संस्था के निदेशक विनय वाता का कहना है कि सरकार ने सेक्स वर्कर को पांच हजार रुपए देने का जो निर्णय लिया है, वह स्वागत योग्य है। फिलहाल सरकार ने एनजीओ को सेक्स वर्कर का सर्वे करने के लिए कहा है। अभी सर्वे चल रहा है। फिर फाइनल लिस्ट सरकार को दी जाएगी। अगर बिना किसी हेरफेर के सच में रेगुलर यह राशि सेक्स वर्कर को दी जाती है तो यह एक बड़ी मदद होगी।
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