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Dainik Bhaskar

हममें से अधिकांश लोग अपनी मांग पूरी करवाने के लिए लोगों को भूख हड़ताल का सहारा लेते देखकर बड़े हुए हैं। जैसे-जैसे हड़ताल के दिन बढ़ेंगे तो कुछ लोगों को अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ेगा और उनके प्रति एक धीमी सहानुभूति की लहर पैदा होने लगेगी और दिन गुजरने के साथ जैसे ही बड़े नेताओं की हालत खराब होगी। सरकार की भी सौदेबाजी की ताकत कमजोर हो जाती है। मुख्य रूप से इसलिए, क्योंकि सहानुभूति की लहर अपने चरम पर पहुंच गई होती है।

लेकिन, मंगलवार को 13वें दिन में पहुंची किसानों की हड़ताल की कहानी ये जताती है कि देश तकलीफ और बलिदान वाले विरोध-प्रदर्शनों और हड़तालों से काफी दूर निकलकर एक स्वच्छ और सुनियोजित लड़ाई की रणनीति पर पहुंच गया है। इसने विरोध की अवधारणा को एक अलग ही स्तर पर पहुंचा दिया है।

किसान जानते थे कि यदि उन्हें हजारों पुरुष, महिलाओं और बच्चों को केवल कुछ घंटों या दिनों के लिए नहीं, बल्कि हफ्तों और महीनों के लिए अपने प्रदर्शन में बनाए रखना है तो उनके पास उनकी रोजमर्रा की सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए आवश्यक सुविधाओं का प्रबंधन करने के लिए ब्लूप्रिंट होना चाहिए।

आंदोलन स्थल पर किसान हर तरह की परिस्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं।

इसके अलावा उनके पास आगामी सर्द मौसम का सामना करने के लिए अतिरिक्त तैयारी भी होनी चाहिए, क्योंकि धरने में शामिल अधिकांश प्रदर्शनकारी पंजाब-हरियाणा-दिल्ली हाइवे रोककर बैठे हैं। ये एक अलग कहानी है कि जिस प्रकार इन आवश्यक सुविधाओं का परिवहन किया गया, इनका स्टॉक और वितरण किया गया, वह किसी भी लॉजिस्टिक मैनेजमेंट कंपनी को आश्चर्य में डालने वाला है।

भोजन-पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं से लेकर सेनिटेशन, चिकित्सा, सुरक्षा, मोबाइल वॉरशिप वैन, सोलर पैनल (यदि सरकार बिजली आपूर्ति बाधित करती है), अखबार भी पढ़ने और यह जानने के लिए कि उनके प्रदर्शन को कैसी कवरेज मिल रही है।

सुविधाओं की एक लंबी सूची है। ये सुविधाएं 20 किलोमीटर से भी ज्यादा दायरे में जगह-जगह मौजूद हैं। यही नहीं, ट्रैक्टर रिपेयरिंग करने के लिए वर्कशॉप भी दूसरे ट्रैक्टर पर बनाई गई हैं। परिवहन की सुविधाओं पर तो थीसिस लिखी जा सकती है।

किसानों की अरदास भी सड़कों पर होती है और मनोरंजन भी। व्यवस्था इसकी भी पूरी है।

शाम को होने वाले मनोरंजन में न केवल पंजाबियों की बहादुरी के किस्से बखान करने वाले लोकगीत, बल्कि किसानों की गौरवगाथा भी शामिल होती है। दिसंबर-जनवरी के समय निकाली जाने वाली धार्मिक प्रभात फेरियों के साथ अगली सुबह की शुरुआत होती है।

संक्षेप में कहें तो यह ‘उड़ता पंजाब’ की कहानी नहीं है, जिसने राज्य की खराब छवि पेश की थी, बल्कि यह ‘उड़कर आया हुआ पंजाब’ की कहानी है। इसने प्रदर्शन को एक व्यवस्थित और योजनाबद्ध विरोध प्रदर्शन का शिक्षण केंद्र बना दिया है।

(मनीषा भल्ला और राहुल कोटियाल के इनपुट के साथ)



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आंदोलन चाहे जितना लंबा खिंचे, किसानों के पास खाने की कमी नहीं होनी है। पंजाब के गांवों से लेकर दिल्ली के बॉर्डर तक सुनियोजित तरीके से यह इंतजाम किया गया है।


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