Header Ads



Dainik Bhaskar

पूरे देश को जिस कोरोना वैक्सीन का बेसब्री से इंतजार है, आज उसे बनाने वालों की कहानी। उन साइंटिस्ट की कहानी, जिनका पूरा लॉकडाउन लैब में रिसर्च करते हुए बीता। उन साइंटिस्ट की कहानी, जिन्हें हमारी तरह ही पिछले साल जनवरी में ये पता चला था कि कोरोना महामारी दुनिया में फैल रही है और इसकी कोई वैक्सीन नहीं है। इन कोरोना वॉरियर्स ने पहली बार भास्कर के साथ अपना अब तक का अनुभव साझा किया। पढ़िए हैदराबाद स्थित दो कंपनियों 'भारत बायोटेक' और 'बायोलॉजिकल ई' के एक-एक साइंटिस्ट की कहानी, उन्हीं की जुबानी।

एमडी ने पूछा था, रिस्क कितना है जानते हो? इस पर विजय ने कहा था- रिस्क है क्या सर

यह बात अप्रैल की है, जब भारत बायोटेक में कोरोना वैक्सीन के लिए टीम मेम्बर्स को चुना जा रहा था। जिस टीम को वैक्सीन के काम में जुटना था, उन्हें बायो सेफ्टी लेवल-3 (बीएसएल-3) लैब में काम करना था। कई महीनों तक घर छोड़कर फैक्ट्री के गेस्ट हाउस में ही रहना था।

कंपनी के एमडी डॉ. कृष्णा ऐल्ला ने जब साथियों से पूछा कि कौन-कौन वैक्सीन डेवलपमेंट के काम में जुटना चाहता है तो सभी ने हाथ उठा दिए। इन्हीं में से एक थे विजय कुमार दरम। विजय सबसे पहले लैब में जाने को तैयार हुए। डॉ. ऐल्ला ने उनसे पूछा कि तुम्हें मालूम है रिस्क कितना हो सकता है' तो विजय ने कहा, 'रिस्क है क्या सर। मैं वैक्सीन डेवलपमेंट करना चाहता हूं।' 28 नवंबर को जब पीएम भारत बायोटेक पहुंचे थे, तब उन्हें भी डॉ. कृष्णा ने विजय से मिलवाया था।

भारत बायोटेक की 'कोवैक्सिन' को डेवलप करने में 200 लोगों की टीम लगी हुई है। इसमें 50 लोग ऐसे हैं, जो लैब के अंदर काम करते हैं। इनमें से 20 साइंटिस्ट हैं। साइंटिस्ट की टीम जुलाई से लेकर नवंबर तक यानी पांच महीने अपने घर नहीं गई। ये लोग कंपनी के गेस्ट हाउस में ही रह रहे थे और यहीं दिन-रात वैक्सीन रिसर्च और डेवलपमेंट में लगे थे। दिसंबर से इन लोगों ने घर जाना शुरू किया।

यह फोटो भारत बायोटेक की लैब का है। यहां के वैज्ञानिक वैक्सीन डेवलपमेंट के दौरान पांच महीने तक घर नहीं गए।

हमें लैब में लाइव वायरस के बीच काम करना होता है, पत्नी ने सपोर्ट किया इसलिए पूरा टाइम लैब में दे पाया

विजय कहते हैं, 'जब मुझे और मेरे साथियों को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया, तब हमें बहुत खुशी और गर्व महसूस हुआ कि हम उस वैक्सीन को डेवलप करने वाले प्रोजेक्ट का हिस्सा बनने जा रहे हैं, जिससे लाखों लोगों की जिंदगियां बचने वाली हैं। लेकिन, इसके साथ ही इस वैक्सीन को जल्द से जल्द डेवलप करने की चुनौती भी थी।'

'अप्रैल से हमने इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर दिया था। हम लोग पांच महीने तक घर नहीं गए। तब अधिकतर समय लैब में ही बीता। लॉकडाउन चल रहा था, तब रॉ मटेरियल जुटाना भी एक चैलेंज था। हमारे पास बायो सेफ्टी लेवल-3 (बीएसएल-3) फैसिलिटी की लैब है, जो काफी सुरक्षित मानी जाती है और भारत में यह लैब सिर्फ हमारे पास ही है।'

उन्होंने कहा, 'यहां हमें लाइव वायरस को हैंडल करना होता है, क्योंकि हम जिस टाइप की कोरोना वैक्सीन बना रहे हैं, उसे वायरस के जरिए ही तैयार किया जाता है। ऐसे में यह काम बहुत ज्यादा सावधानी से करना होता है, क्योंकि एक भी लीकेज होने पर इंफेक्शन का खतरा हो सकता है।'

हमने विजय से पूछा कि आप लोगों ने इंफेक्शन से बचने के लिए क्या किया? इसके जवाब में वो बोले, 'पीपीई के अलावा प्राइमरी गाउन, सेकंडरी गाउन, डबल ग्लव्स पहनते हैं।' इस सवाल पर कि जब आप रिसर्च में जुटे रहे और घर नहीं जा पाए तो घर में आपकी जिम्मेदारियां किसने संभाली? उन्होंने कहा कि मेरी पूरी जिम्मेदारियां पत्नी ने संभाली। उन्होंने घर के साथ ही बाहर के भी सब कामकाज देखे। इसी के चलते हम लैब में इतना टाइम दे पाए।' हालांकि, दिसंबर के पहले हफ्ते से साइंटिस्ट घर जाना शुरू कर चुके हैं।

(2021 इस सदी के लिए उम्मीदों का सबसे बड़ा साल है। वजह- जिस कोरोना ने देश के एक करोड़ से ज्यादा लोगों को अपनी चपेट में लिया, उसी से बचाने वाली वैक्सीन से नए साल की शुरुआत होगी। इसलिए 2021 के माथे पर यह उम्मीदों का टीका है।)

दूसरी कहानी डॉ. विक्रम पराड़कर की
डॉ. पराड़कर, साइंटिस्ट हैं और बायोलॉजिकल ई कंपनी में एग्जिक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट हैं। वो और उनकी टीम पिछले करीब 9 महीने से कोरोना वैक्सीन के डेवलपमेंट में लगी है। आगे की कहानी, डॉ. पराड़कर की ही जुबानी...

40 साइंटिस्ट की टीम, लिटरेचर पढ़ते हैं, दिमाग सोचना बंद नहीं करता...
डॉ. पराड़कर कहते हैं, 'हमारी कंपनी में दो हजार इम्प्लॉई हैं। कोरोना वैक्सीन के डेवलपमेंट में 40 साइंटिस्ट की टीम लगी है। इनकी उम्र 25 से 55 साल के बीच है। लॉकडाउन में जब सबकुछ बंद हो गया था, तब हम लोग वैक्सीन डेवलपमेंट में लगे हुए थे। जरूरी सेवाओं के चलते हमें आने-जाने की छूट थी।'

'कंपनी की बस से आना-जाना करते थे। आमतौर पर हफ्ते में 40 से 45 घंटे की वर्किंग होती है, लेकिन अब कई दफा 60 से 65 घंटे की भी हो रही है। कई बार दो शिफ्ट एक साथ पूरी कर रहे हैं, क्योंकि जो प्रॉसेस चल रही होती है, उसे हमें कंटीन्यू मॉनिटर करना होता है। लिटरेचर सर्च करना पड़ता है। इसके साथ में दिमाग में थिंकिंग तो चलते ही रहती है। हमारी पूरी टीम अनुभवी है। हम कई वैक्सीन डेवलप कर चुके हैं, इसलिए सबको पता है कि उन्हें उनका काम कैसे करना है।'

डॉ. पराड़कर साइंटिस्ट हैं और बायोलॉजिकल ई कंपनी में उनकी टीम 9 महीने से वैक्सीन डेवलपमेंट में लगी है।

सिचुएशन के हिसाब से बदल जाती है किट, प्रोटीन बना रहे थे इसलिए इंफेक्शन का खतरा नहीं था

डॉ. पराड़कर ने बताया कि वैक्सीन में 6 टाइप की कैटेगरी होती हैं। हम प्रोटीन सब-यूनिट कैटेगरी वाली वैक्सीन बना रहे हैं। इस कैटेगरी में वैक्सीन बनाने पर वायरस की जरूरत नहीं पड़ती। प्रोटीन लैब में विकसित किया जाता है। यह सबसे सुरक्षित होता है, क्योंकि इसमें कोई वायरस होता ही नहीं। इसलिए हम लैब में पूरी तरह से सेफ होते हैं। फिर भी सभी लोग घर से फैक्ट्री आते हैं। मार्केट जाते हैं, इसलिए प्रोटेक्शन जरूरी है। जहां जरूरी होता है, वहां प्रोटेक्शन के लिए पूरी किट पहनते हैं। लैब में ग्लव्स, मास्क और फेस शील्ड पहनते हैं। मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट में जाते हैं तो पूरी बॉडी कवर होती है।

वो बताते हैं कि हर एक सिचुएशन के हिसाब से हमारी किट अलग होती है। हमारे घरवालों को ये पता होता है कि हम कैसे काम करते हैं, क्योंकि हम सालों से यही काम कर रहे हैं। कोरोना में भी उन्हें पता था कि हम प्रोटीन बना रहे हैं इसलिए वे टेंशन में नहीं थे।

कुछ साइंटिस्ट कोरोना का शिकार हुए, कुछ को बदलने पड़े अपने घर
उन्होंने कहा, 'हमारे सामने सबसे बड़ा चैलेंज इफेक्टिव और पूरी तरह से सेफ वैक्सीन डेवलप करने का ही है। कुछ दूसरे चैलेंज भी आए, जैसे कुछ साथी ऐसे हैं, जो शेयरिंग में रह रहे थे। लॉकडाउन में मकान मालिक ने उन्हें बाहर निकलने से मना कर दिया तो वो लोग कंपनी के गेस्ट हाउस में ही रुके। कुछ साथी ऐसे हैं, जिन्होंने लॉकडाउन के वक्त घर कंपनी के पास में ही ले लिया, ताकि आने-जाने में कोई दिक्कत न आए। कुछ साइंटिस्ट कोरोनावायरस का शिकार भी हो गए। उन्हें कंपनी ने तुंरत क्वारैंटाइन किया और उनका ट्रीटमेंट करवाया। ठीक होने के बाद वो दोबारा लैब में मुस्तैद हो गए।'

डॉ. पराड़कर बताते हैं, 'सबसे यूनिक बात ये रही कि कभी किसी ने किसी भी काम के लिए मना नहीं किया, न ही शिफ्ट पूरी होने की बात कही। टीम मेम्बर्स ने अपना सौ प्रतिशत दिया। इसी का नतीजा रहा कि, हम वैक्सीन डेवलप करने के इतने करीब आ गए हैं। कुछ ही महीनों में पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी वैक्सीन तैयार हो जाएगी।'

यह फोटो बायोलॉजिकल ई कंपनी के साइंटिस्ट का है, जो लैब में वैक्सीन रिसर्च में लगे हुए हैं।

ट्रायल में अब तक 150 वॉलंटियर्स को वैक्सीन दे चुके हैं, फरवरी में शुरू होंगे फेज थ्री के ट्रायल

वो कहते हैं कि अभी हमारे फेज वन और फेज टू के ट्रायल एक साथ चल रहे हैं। इन दोनों फेज में हमें कुल 360 लोगों को वैक्सीन देनी है, जिनमें से 150 लोगों को दी जा चुकी है। देश में सात जगह हमारे ट्रायल चल रहे हैं। हम चार टाइप के वेरिएंट टेस्ट कर रहे हैं। जिस भी टाइप में सेफ्टी और इम्युनिटी सबसे अच्छी आएगी, उसी पर वैक्सीन डेवलप की जाएगी।

उन्होंने बताया, 'फरवरी तक हम चार में से कोई एक बेस्ट कॉम्बिनेशन चुन लेंगे। इसके बाद फेज थ्री के क्लीनिकल ट्रायल शुरू करेंगे। फेज थ्री में 12 से लेकर 80 साल तक के वॉलंटियर्स को शामिल करेंगे ताकि सभी के लिए वैक्सीन तैयार हो सके। इसमें ऐसे मरीजों को भी शामिल किया जाएगा, जो पहले से गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। फरवरी-मार्च में हमने वैक्सीन की शुरूआती खोजबीन की थी और अप्रैल से वैक्सीन डेवलपमेंट शुरू किया। इस साल अप्रैल तक हमारे फेज थ्री के क्लीनिकल ट्रायल शुरू हो जाएंगे। आमतौर पर किसी वैक्सीन को इस स्टेज तक आने में चार साल लग जाते हैं। लेकिन, कोरोना वैक्सीन एक साल में ही इस स्टेज पर पहुंच गई, क्योंकि कंपनी के सारे रिसोर्सेज इसी पर लगे हुए हैं। अभी दूसरे सारे काम पीछे कर दिए गए हैं। सरकार का रिव्यू भी जल्दी-जल्दी हो रहा है। इससे पेपर वर्क में टाइम वेस्ट नहीं हो रहा।'

50 सालों से वैक्सीन बना रहे, 120 देशों में पहुंचती है हमारी वैक्सीन

डॉ. पराड़कर ने कहा, 'मैं वैक्सीन डेवलपमेंट की शुरूआत के बारे में भी बताना चाहता हूं। जनवरी में चीन ने अनाउंस किया था कि एक नया वायरस आया है, जिसका नाम कोरोनावायरस है। फिर WHO ने कहा कि यह ह्यूमन-टू ह्यूमन ट्रांसमिट हो रहा है और पूरी दुनिया में इसके फैलने की आशंका है। WHO के अनाउंस करते ही सबको यह पता चला गया था कि ये इंफेक्शन महामारी में बदलने वाला है। हर कोई परेशान था, क्योंकि किसी के पास इससे बचने की इम्युनिटी नहीं थी। तब हमने सोचा कि इस महामारी से बचने का सिर्फ एक ही तरीका है, और वो है वैक्सीन।'

'हमारी कंपनी पिछले करीब 50 साल से वैक्सीन बना रही है। हम 120 देशों में वैक्सीन बेचते हैं। सरकारी प्रोग्राम के लिए हम पचास साल से वैक्सीन सप्लाई कर रहे हैं। इसलिए हमने डिसीजन लिया कि हम इसकी वैक्सीन बनाएंगे। हमने सबसे पहले रिसर्च करके जाना कि हम किस टाइप की वैक्सीन बना सकते हैं। हमने हैपेटाइटिस की वैक्सीन बनाई है। पिछले पंद्रह सालों से इस वैक्सीन को बना रहे हैं, जो पूरी तरह से सुरक्षित और प्रभावी है इसलिए हमने सोचा कि हम इसी टेक्नोलॉजी के बेस पर कोरोनावायरस की वैक्सीन भी डेवलप करेंगे। मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) और बायलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन भी उसी टेक्नोलॉजी पर वैक्सीन रिसर्च करने का प्लान बना रहे थे, जो हमने सोचा था।'

वो बताते हैं कि MIT और बायलर कॉलेज ने कॉन्सेप्ट तैयार करके हमसे कॉन्टैक्ट किया कि आपके पास कैपेसिटी है तो क्या हम साथ मिलकर ये वैक्सीन बना सकते हैं। सबकुछ इवेल्युएट करने के बाद साथ मिलकर वैक्सीन बनाने पर सहमति बनी। जुलाई में वैक्सीन कैंडीडेट फिक्स किया। एनिमल्स पर टेस्टिंग की और वैक्सीन का डिजाइन तैयार किया। फिर क्लीनिकल ट्रायल्स शुरू हुए, जो अभी चल रहे हैं।

ये भी पढ़ें



आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
Coronavirus Vaccine Scientist Interview; Bharat Biotech COVAXIN, Biological E DR. Vikram Paradkar Speaks To Dainik Bhaskar


from Dainik Bhaskar https://ift.tt/3pC96Dm

No comments

If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....

Powered by Blogger.