Dainik Bhaskar
ये बातचीत है आज के दौर के सबसे जरूरी और अहम व्यक्तियों में एक से। आप हैं डॉ. कृष्णा एम. ऐल्ला। डॉ. ऐल्ला भारत बायोटेक कंपनी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं। ये कंपनी हैदराबाद के जीनोम वैली में है। यह कंपनी कोराेना की वैक्सीन बना रही है।
डॉ. ऐल्ला और उनकी टीम पिछले 9 महीने से इस पर काम कर रही है। काम का आलम ये है कि 65 साल के डॉ. ऐल्ला रोज लैब में 16 घंटे बिता रहे हैं। उनकी पत्नी सुचित्रा ऐल्ला यूं तो कंपनी में ज्वाइंट मैनेजिंग डायरेक्टर हैं, लेकिन इन दिनों कंपनी के लैब में काम कर रहे साइंटिस्ट के खाने-पीने से लेकर रहने तक का इंतजाम देख रही हैं। कहें तो मां जैसा रोल निभा रही हैं।
कोवैक्सिन के क्लीनिकल ट्रायल के बीच डॉ. ऐल्ला ने पहली बार किसी मीडिया हाउस से बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने वैक्सीन के साथ-साथ अपनी जिंदगी से जुड़े उन तमाम पहलुओं पर भी बात की, जिन्हें कभी-कभार या ना के बराबर साझा किया है।
तो पढ़िए पूरी बातचीत...
आपने कोवैक्सिन बनाने के बारे में कब सोचा और इस बारे में पहली बात किनसे हुई थी?
पिछले साल जनवरी में चीन में कोरोना की वैक्सीन बनने का काम शुरू हो गया था। मार्च-अप्रैल में यूएस, रशिया ने भी काम शुरू कर दिया था। तब मुझे लगा कि तुरंत काम शुरू नहीं हुआ तो भारत इस दौड़ में पीछे छूट सकता है। महामारी में कोई देश किसी का साथ नहीं देता। सब पहले खुद को बचाते हैं। नेशनलिज्म आ जाता है। इसलिए मैंने तुरंत इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) में बात की और वैक्सीन डेवलपमेंट में लग गए। उस वक्त तो हम घर में भी यही डिस्कस किया करते थे कि किसी भी तरह भारत को अपनी वैक्सीन बनानी चाहिए, क्योंकि यह हमारी इज्जत का सवाल है।
इस वैक्सीन को बनाने के लिए आपने टीम कैसे चुनी? कितने लोगों को शामिल किया?
हमने शुरू में करीब 200 लोगों की टीम वैक्सीन डेवलपमेंट के लिए चुनी। इसमें 50 लोग ऐसे थे, जिन्हें लैब के अंदर काम करना था। इन 50 में से 20 साइंटिस्ट थे। लैब के अंदर रहने वालों की उम्र 35 साल या इससे भी कम थी। शर्त बस ये थी कि जो भी लोग चुने जाएंगे, वो अगले 5 महीने घर नहीं जा सकते। उनके रुकने और खाने-पीने का इंतजाम कंपनी गेस्ट हाउस में ही रहेगा इसलिए सभी को पहले ही कह दिया था कि आप अपने परिवार और पत्नी से परमीशन लेकर आओ। जब सभी ने सहमति दे दी, तब हमने उन्हें टीम में शामिल किया।
वैक्सीन डेवलपमेंट में लगने के बाद आपकी जिंदगी में कोई बदलाव आया क्या?
कोरोना वैक्सीन पर जब से काम शुरू हुआ है, तब से हर रोज लैब में 16 से 18 घंटे दे रहा हूं। अभी जिंदगी में टेंशन बहुत है। हैप्पीनेस कम है। जिस दिन भी कोई नेगेटिव चीज होती है, उस रात सो नहीं पाता। जो दिन अच्छा बीतता है, उस रात नींद भी अच्छी आ जाती है। यही बदलाव आया है और ये बहुत बड़ा है।
खबर ये है कि आपकी पत्नी डॉ. सुचित्रा ऐल्ला भी वैक्सीन डेवलपमेंट में लगी हुई हैं?
नहीं ऐसा नहीं है। वो डेवलपमेंट में शामिल नहीं हैं, लेकिन साइंटिस्ट के रुकने, खाने-पीने का सारा इंतजाम उन्हीं के जिम्मे है। और सबसे बड़ी बात ये है कि वो सभी को मोटिवेट रखती हैं। उनका ये कॉन्ट्रीब्यूशन सबसे बड़ा है।
इस वैक्सीन डेवलपमेंट के दौरान आपके लिए अब तक का सबसे बड़ा चैलेंज क्या रहा?
हमारे लिए तो मीडिया ही सबसे बड़ा चैलेंज बना हुआ है। हम क्लीनिकल ट्रायल कर रहे हैं। मीडिया कई बार ऐसी खबरें छापता है, जो लोगों में भ्रम फैलाती हैं और इससे ट्रायल प्रभावित होता है। अभी जो वॉलेंटियर्स क्लीनिकल ट्रायल में शामिल हो रहे हैं, वो हमारे लिए सैनिक की तरह हैं। उनके बिना ट्रायल नहीं हो सकता और यदि हम क्लीनिकल ट्रायल नहीं करेंगे तो कभी कुछ नया इन्वेंट नहीं कर पाएंगे। मैं तो ये कहता हूं कि एक बार मुझे अपने ट्रायल्स पूरे कर लेने दीजिए फिर यदि कुछ गलत निकले तो पुलिस में मेरी रिपोर्ट डाल देना, लेकिन कम से कम इस काम में अड़ंगा तो मत डालिए।
अब कुछ आपके बारे में जानना चाहता हूं... मैंने पढ़ा कि आप किसान के बेटे हैं, फिर फार्मा में कैसे आ गए?
मेरा पूरा परिवार खेतीबाड़ी से ही जुड़ा रहा है। मुझसे पहले घर में कभी कोई बिजनेसमैन, आंत्रप्रेन्योर, प्रोफेशनल नहीं हुआ। मिडिल क्लास फैमिली थी। मैंने भी एग्रीकल्चर में ही ग्रेजुएशन किया था, लेकिन जब पिताजी को खेती करने का बोला तो उन्होंने कहा कि तुम्हारी ये डिग्री नौकरी में काम आ सकती है। इनके दम पर खेती तो नहीं कर पाओगे।
उस समय परिवार की आर्थिक स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी इसलिए मैंने एक कंपनी में नौकरी शुरू कर दी। उसी दौरान मुझे फैलोशिप मिल गई और मैं पढ़ाई के लिए यूएस चला गया। वहां पीजी और पीएचडी किया। वहीं सैटल हो गया था। भारत आने का मन भी नहीं था, लेकिन मेरी मां और पत्नी ने जिद पकड़ ली कि भारत आओ।
मां ने कहा- बेटा कमा कितना भी लो, लेकिन तुम्हारा पेट 9 इंच का ही है। इससे ज्यादा नहीं खा पाओगे। कोई टेंशन मत लो, हम सब देख लेंगे, बस तुम इंडिया आ जाओ। भूखा नहीं रहने देंगे। इसके बाद मैं भारत आ गया। सोच ही रहा था कि भारत में क्या करूंगा।
उस समय हेपेटाइटिस का एक टीका 5 हजार रुपए का आता था, तो सोचा कि क्यों न सस्ता टीका भारत में बनाया जाए, क्योंकि मॉलिक्यूलर बायोलॉजी में मेरा एक्सपर्टाइजेशन था। बस यहीं से फार्मा सेक्टर में एंट्री हो गई और फिर यह सफर शुरू हो गया।
जिंदगी में अब तक का सफर कैसा रहा है? कभी पलट कर सोचने का मौका मिलता है...
हेपेटाइटिस की सबसे सस्ती दवा हमने बनाई। अब तो 10 रुपए में ही मिल रही है। 1998 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने इसे लॉन्च किया था। पूरी दुनिया में जीका वायरस का टीका बनाने के लिए सबसे पहले हमने पेटेंट कराया। रोटा वायरस का पहला स्वदेशी टीका भी हमने ही बनाया। इसके लिए एफिकेसी क्लीनिकल ट्रायल किया था, जिसमें देश के 6800 वॉलंटियर्स शामिल हुए थे। किसी भी नई बीमारी को हराने के लिए क्लीनिकल ट्रायल्स बहुत जरूरी होते हैं। देश में क्लीनिकल ट्रायल्स हमने ही शुरू किए।
हम दो-पांच नहीं, बल्कि आठ-दस सालों तक का पहले से सोचते हैं और उससे जुड़ी रिसर्च में लगे रहते हैं। तब जाकर कहीं जिंदगी बचाने वाले टीके बन पाते हैं। कोवैक्सिन भी हम पूरी तरह से भारत में ही डेवलप कर रहे हैं। हमारा कोई विदेशी गॉडफादर नहीं है। हमारी गॉडफादर सिर्फ भारत सरकार है।
वैक्सीन के अप्रूवल के बाद कोवैक्सिन के कितने डोज लगवाने होंगे? और हां... इसकी कीमत क्या होगी?
इसके दो डोज लगवाने होंगे। पहले डोज के 28 दिनों के बाद दूसरा डोज दिया जाएगा। कीमत के बारे में अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। हां शुरुआत में कीमत थोड़ी ज्यादा हो सकती है, लेकिन जैसे-जैसे वॉल्यूम बढ़ता जाएगा, वैसे-वैसे कीमत कम होती जाएगी।
वैक्सीन को कितने टेम्प्रेचर पर स्टोर करना जरूरी होगा? और अपने देश में वैक्सीनेशन कब चल सकता है?
वैक्सीन को 4 डिग्री के टेम्प्रेचर पर स्टोर करना होगा, इसके लिए किसी खास टेम्प्रेचर की जरूरत नहीं। वैक्सीनेशन कब तक चलेगा, यह अभी नहीं कहा जा सकता, लेकिन मुझे व्यक्तिगत तौर पर लगता है कि यह अगले दो से तीन साल तो चलना चाहिए।
आपकी कंपनी के जिस लैब में साइंटिस्ट रिसर्च कर रहे हैं, वो कितनी सुरक्षित है?
हमारे पास बायो सेफ्टी लेवल-3 फैसिलिटी वाली लैब है। यहां काम करने वाले वैज्ञानिक अपने घर से भी ज्यादा सुरक्षित होते हैं। वे लंच के लिए बाहर आते हैं। लैब में जाते वक्त हमारी ड्रेस किसी स्पेस सूट की तरह होती है, जो हमें पूरी तरह से सुरक्षित रहने में मदद करती है।
ट्रायल के फेज-3 के नतीजे कब तक आने की उम्मीद है? और वैक्सीन कब तक लॉन्च कर सकते हैं?
फेज-3 में कुल 26 हजार वॉलंटियर्स पर ट्रायल किए जाना है। हम 13 हजार वॉलेंटियर्स रिक्रूट कर चुके हैं। इसके नतीजे फरवरी में आना शुरू हो सकते हैं। वैक्सीन मार्केट में कब आएगी, ये सरकार को तय करना है, क्योंकि यह महामारी का मामला है। हम इमरजेंसी यूज की परमिशन के लिए अप्लाई कर चुके हैं। अगर सरकार आज इजाजत दे दो तो हम तुरंत वैक्सीन अवेलेबल करवा सकते हैं, क्योंकि हमारे फेज वन और टू के ट्रायल बहुत अच्छे रहे हैं। पुणे में एनिमल्स पर जो ट्रायल किए थे, वो भी पूरी तरह से सफल रहे हैं।
ये भी पढ़ें...
- 2020 में देश के टॉप 10 अचीवमेंट:वैक्सीन बनाने में नंबर 1 और पीपीई किट बनाने में नंबर 2 बने, ज्यादा प्रोटीन वाले गेहूं से कुपोषण करेंगे खत्म
- 2020 में दुनिया के टॉप 10 अचीवमेंट:कोरोना की वैक्सीन बनी, अफ्रीका पोलियो मुक्त हुआ; कमला हैरिस चुनी गईं अमेरिका की पहली महिला उपराष्ट्रपति
- 2020 में सब बदला:हर सेक्टर पर मार, फिर भी ना मानी हार; सिनेमाघर बंद हुए तो OTT पर आए, स्टेडियम में रोबोट बैठाए, पर खेले जरूर
- वेलकम 2021:सबसे ऊंचे रिहायशी टॉवर हों या सी-प्लेन वाले वाटर एयरपोर्ट्स, भारत की तस्वीर बदल देंगे ये 10 मेगा प्रोजेक्ट
आज की ताज़ा ख़बरें पढ़ने के लिए दैनिक भास्कर ऍप डाउनलोड करें
from Dainik Bhaskar https://ift.tt/383x04Q
No comments
If any suggestion about my Blog and Blog contented then Please message me..... I want to improve my Blog contented . Jay Hind ....