Dainik Bhaskar
जिस तरह कोरोनावायरस के नए-नए वैरिएंट्स सामने आ रहे हैं, वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ती जा रही है। ब्रिटिश वैज्ञानिकों का कहना है कि दक्षिण अफ्रीका में मिले कोरोना के नए वैरिएंट पर वैक्सीन फेल हो सकती है। इसने एक नई बहस छेड़ दी है कि क्या अब तक जो वैक्सीन बनी हैं, वे बेकार हो जाएंगी? क्या वैक्सीन को जल्द अपडेट करने की नौबत आएगी? आइए इन सवालों के जवाब तलाशते हैं।
नए वैरिएंट्स पर क्या कह रहे हैं ब्रिटिश वैज्ञानिक?
- दरअसल, ब्रिटेन के साथ-साथ दक्षिण अफ्रीका और नाइजीरिया समेत कई देशों में कोरोना के नए वैरिएंट्स सामने आए हैं। यह पहले से ज्यादा घातक है और 70% तक तेजी से ट्रांसमिट होते हैं। यूरोप और दुनिया के अन्य हिस्सों में कोरोना के बढ़ते केस के पीछे इन्हें ही कारण माना जा रहा है।
- नया दावा ब्रिटेन के स्वास्थ्य मंत्री मैट हैंकॉक के बयान से आया। उन्होंने कहा है कि दक्षिण अफ्रीका में मिला नया वैरिएंट चिंताएं पैदा कर रहा है। न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने पॉलिटिकल एडिटर रॉबर्ट पेस्टन के हवाले से कहा कि हैंकॉक की चिंता का कारण सरकार के एक साइंटिफिक एडवाइजर हैं। उनका कहना है कि दक्षिण अफ्रीकी वैरिएंट पर वैक्सीन फेल हो सकती है।
Govt of Botswana says new strain of virus reported in South Africa has now been detected in the Country.
— Samira Sawlani (@samirasawlani) January 3, 2021
Announce extension of curfew: will now be 8pm- 4am - till 31st January.
Suspends sales of alcohol.
Consumption of alcohol in public places is also banned. pic.twitter.com/iJkj9cxofg
क्या वाकई वैज्ञानिकों को फिक्र करने की जरूरत है?
- हां। अब तक की स्टडी से तो यही लगता है। 18 दिसंबर को दक्षिण अफ्रीका ने घोषणा की थी कि उसके तीन राज्यों में कोरोनावायरस के नए वैरिएंट 501Y.V2 के इंफेक्शन सामने आए हैं। इस नए स्ट्रेन ने वैज्ञानिकों को अलर्ट कर दिया है, क्योंकि इसके स्पाइक प्रोटीन में बहुत ज्यादा बदलाव हुए हैं। स्पाइक प्रोटीन का ही इस्तेमाल कर वायरस इंसानों को इंफेक्ट करता है।
- इस स्ट्रेन की वजह से शरीर में वायरल की संख्या बढ़ती है। मरीजों के शरीर में वायरस पार्टिकल्स की संख्या काफी बढ़ जाती है। इससे ट्रांसमिशन भी तेज हो रहा है। अब तक चार से ज्यादा देशों में यह स्ट्रेन डिटेक्ट हुआ है। कुछ दिनों में इसके बारे में और ज्यादा जानकारी सामने आ सकती है।
- फाइजर के साथ वैक्सीन डेवलप करने वाली जर्मन कंपनी बायोएनटेक के सीईओ उगुर साहिन और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में मेडिसिन के प्रोफेसर जॉन बेल का कहना है कि वे वैक्सीन को नए वैरिएंट्स पर टेस्ट कर रहे हैं। छह हफ्ते बाद ही हम इस पर कुछ कहने की स्थिति में होंगे।
- बेल ब्रिटिश सरकार की वैक्सीन टास्क फोर्स के एडवाइजर भी हैं। उनका कहना है कि इस बात पर बहुत बड़ा सवालिया निशान लगा हुआ है कि यह वैक्सीन दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन पर भी कारगर रहेगी या नहीं? दक्षिण अफ्रीकी स्ट्रेन के मुकाबले में नई वैक्सीन बनने में छह हफ्ते का समय लग सकता है।
Oxford University's Regius Professor of Medicine Sir John Bell tells G&T the South African covid variant is more worrying than the Kent variant "by some margin". "It's here" already, and the current vaccines may not work on it: "There's a big question mark about that" @TimesRadio
— Tom Newton Dunn (@tnewtondunn) January 3, 2021
क्या भारत में भी घबराने की जरूरत है?
- हां, कुछ हद तक। दरअसल, मंगलवार तक ब्रिटिश स्ट्रेन के 58 केस भारत में सामने आ चुके हैं। भारतीय वैज्ञानिकों की माने तो नए स्ट्रेन भारत ही नहीं बल्कि 34 देशों में दिखे हैं। इनके बारे में और स्टडी की जा रही है। तभी पता चल सकेगा कि वैक्सीन नए स्ट्रेन पर कारगर होगी या नहीं।
- पिछले दिनों भारत बायोटेक की ज्वॉइंट एमडी सुचित्रा एल्ला ने भास्कर को दिए इंटरव्यू में दावा किया था कि उनकी वैक्सीन- कोवैक्सिन को पूरे वायरस से मुकाबला करने के लिए बनाया गया है। वायरस में जो बदलाव हुए हैं, वह स्पाइक प्रोटीन या उसके हिस्सों तक सीमित है। इस वजह से उन वैक्सीन का असर प्रभावित होगा, जो पूरे वायरस पर नहीं बने हैं और अलग-अलग हिस्सों को टारगेट करते हैं। इसके मुकाबले कोवैक्सिन पूरे वायरस को टारगेट करती है, इस वजह से असरदार बनी रहेगी।
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